परथन लगाकर बेलिए

नवभारत टाइम्स
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समय के साथ कई शब्द लुप्त हो रहे हैं। रोटी बेलने के लिए इस्तेमाल होने वाला 'परथन' या 'पलथन' अब आम बोलचाल से गायब हो रहा है। इसे अब केवल 'बस आटा' कहा जाता है। बिहार, झारखंड, मैथिली और भोजपुरी में यह शब्द आज भी प्रचलित है। दिल्ली-एनसीआर में 'पलोथन' सुना जाता है।

parthan the disappearing word for roti rolling flour and its cultural significance
बदलते वक्त के साथ हमारी बोलियों से कई अनमोल शब्द गायब होते जा रहे हैं। ऐसा ही एक शब्द है ' परथन ' या 'पलथन', जिसे रोटी बेलते समय इस्तेमाल किया जाता है। आज इसे आम बोलचाल में 'बस आटा' कहकर टाल दिया जाता है। बिहार और झारखंड में तो आखिरी रोटी का चलन ही नहीं है, और अक्सर बची हुई परथन की रोटी ही इस काम को पूरा करती है। मैथिली और भोजपुरी में भी इसे 'परथन' ही कहा जाता है। दिल्ली-एनसीआर में हिंदी बोलने वाले घरों में 'पलोथन' शब्द सुनाई दे ही जाता है। गुजरात में पिसे हुए अनाज को 'लोट', गुंथे हुए आटे को 'कणक', और रोटी बेलने में लगने वाले आटे को 'अटामण' कहते हैं। मारवाड़ी में यह 'पलोघन' और मराठी में 'पीठ लावणे' बन जाता है। बांग्ला के शहरी इलाकों में लोग इसे 'रुटी बेलार आटा' कहकर काम चला लेते हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में शायद इसका कोई खास नाम रहा होगा। दिलचस्प बात यह है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में 'परथन' मुहावरे के रूप में आज भी जीवित है। जैसे, ‘परथन लगाकर मत बोलिए’, जिसका मतलब है बातों को बढ़ा-चढ़ाकर या मसाले लगाकर न कहें। अंग्रेजी में 'परथन' के लिए कोई सीधा शब्द नहीं है, लेकिन अंग्रेजी समझने वालों को इसे 'flour for dusting the dough' कहकर समझाया जा सकता है।

यह शब्द, जो कभी रोटी बनाने की प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा था, अब धीरे-धीरे हमारी जुबान से उतरता जा रहा है। पहले रोटी बेलने के लिए खास तौर पर तैयार किए गए इस आटे को 'परथन' कहते थे। यह आटा रोटी को चिपकने से बचाता था और उसे बेलने में आसानी करता था। लेकिन आज के दौर में, जहां सब कुछ जल्दी में हो रहा है, इस बारीक अंतर को समझना मुश्किल हो गया है। लोग इसे बस 'आटा' कहकर काम चला लेते हैं, जिससे इस शब्द का महत्व कम हो गया है।
अलग-अलग राज्यों और भाषाओं में इस आटे के लिए अलग-अलग नाम हैं, जो हमारी भाषाई विविधता को दर्शाते हैं। बिहार और झारखंड में तो आखिरी रोटी का रिवाज ही नहीं है, ऐसे में परथन का इस्तेमाल और भी कम हो जाता है। मैथिली और भोजपुरी जैसी भाषाओं में आज भी 'परथन' शब्द का प्रयोग होता है, जो इन भाषाओं की जड़ों को मजबूत करता है। दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े शहरों में 'पलोथन' शब्द सुनने को मिल जाता है, जो शायद इसी 'परथन' का बदला हुआ रूप है।

गुजरात की भाषा में तो इसके कई रूप हैं। वहां पिसे हुए अनाज को 'लोट', गुंथे हुए आटे को 'कणक', और रोटी बेलने में इस्तेमाल होने वाले आटे को 'अटामण' कहते हैं। यह दिखाता है कि कैसे एक ही चीज के लिए अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग शब्द इस्तेमाल होते हैं। मारवाड़ी में इसे 'पलोघन' और मराठी में 'पीठ लावणे' कहा जाता है। यह सब हमारी भाषाओं की समृद्ध विरासत का हिस्सा है।

बांग्ला भाषा में, खासकर शहरों में, लोग इसे बस 'रुटी बेलार आटा' कहकर काम चला लेते हैं। इसका मतलब है 'रोटी बेलने वाला आटा'। यह दिखाता है कि कैसे शहरीकरण और आधुनिकता के प्रभाव से कई पारंपरिक शब्द अपनी जगह खो रहे हैं। लेकिन, हिंदी भाषी क्षेत्रों में 'परथन' शब्द मुहावरे के रूप में आज भी जिंदा है। जब कोई व्यक्ति अपनी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहता है, तो कहा जाता है कि वह 'परथन लगाकर बोल रहा है'। इसका मतलब है कि वह अपनी बातों में अनावश्यक मसाला मिला रहा है।

अंग्रेजी भाषा में 'परथन' के लिए कोई सीधा शब्द नहीं है। लेकिन अगर किसी को समझाना हो, तो हम कह सकते हैं 'flour for dusting the dough'। इसका मतलब है कि यह वह आटा है जिसका इस्तेमाल रोटी बेलते समय उसे चिपकने से बचाने के लिए किया जाता है। यह दिखाता है कि कैसे कुछ शब्द हमारी संस्कृति और भाषा में इतने गहरे उतर जाते हैं कि उनका सीधा अनुवाद करना भी मुश्किल हो जाता है।

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