नई दिल्ली : आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी ने रीपो रेट को 25 बेसिस पॉइंट्स घटाकर 5.25% पर लाने और लिक्विडिटी बढ़ाने का जो फैसला किया है। इससे कर्ज की मांग बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन डिपॉजिट जुटाने में बैंकों की चुनौती भी बढ़ सकती है। दूसरी ओर, बैंकों ने अगर FD पर ब्याज दरें और घटाईं, तो म्यूचुअल फंड्स में निवेशकों की दिलचस्पी और बढ़ सकती है।
ताजा फैसले के चलते बैंकों को होम लोन से कार लोन तक पर ब्याज दरें घटानी होंगी, जो उनकी कमाई का एक बड़ा जरिया है। इससे उनकी नेट इंटरेस्ट इनकम (NII) पर आंच आ सकती है। लोन पर ब्याज से कमाई और डिपॉजिट पर ब्याज की देनदारी का अंतर NII है। केयरएज की रिपोर्ट के मुताबिक, इस वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में बैंकों की NII 2.9% ही बढ़ी, जो सालभर पहले की इसी तिमाही में 10.3% बढ़ी थी। NII संभालने के लिए डिपॉजिट रेट घटाना होगा, लेकिन निवेशक जिस तरह से शेयर बाजार की ओर मुड़े हैं, उसके चलते बैंकों के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा।
LKP सिक्योरिटीज के इक्विटी रिसर्च एनालिस्ट निनाद जाधव ने कहा, 'रीपो रेट कट लेंडिंग सेक्टर के लिए मोटे तौर पर पॉजिटिव है, लेकिन बैंकों के लिए तुरंत असर यह होगा कि लोन की ब्याज दरें तो घटनी शुरू हो जाएंगी, लेकिन टर्म डिपॉजिट रेट तुरंत नहीं घटाया जा सकता। इससे बैंकों के नेट इंटरेस्ट मार्जिन पर दबाव बनेगा।'
