मद्रास हाईकोर्ट जजों की लिस्ट में आदि द्रविड़ वकीलों को मौका नहीं, थोल. திருமवलवन का आरोप

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मद्रास हाईकोर्ट कॉलेजियम ने जजों की नियुक्ति के लिए जो सूची भेजी है उसमें दलित समुदाय के किसी भी वकील को जगह नहीं मिली है। वीसीके अध्यक्ष थोल. तिरुमावलवन ने इसे गंभीर अन्याय बताया है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में अनुसूचित जातियों और पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व कम है।

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चेन्नई: वीसीके (VCK) के अध्यक्ष थोल तिरुमावलवन ने शुक्रवार को मद्रास हाई कोर्ट कॉलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों की सूची में एक भी दलित समुदाय के वकील को शामिल न करने पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने इसे "गंभीर अन्याय" और "चौंकाने वाला और अस्वीकार्य" बताया। तिरुमावलवन ने कॉलेजियम से इस "गंभीर रूप से असंतुलित चयन पैटर्न" को "सुधारने" और अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) और पिछड़ा वर्ग (Backward Classes) को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने पर विचार करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में इन समुदायों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हाई कोर्ट में जजों के लिए प्रस्तावित नियुक्तियों की सूची भाजपा-आरएसएस (BJP-RSS) समर्थित वकीलों से भरी हुई है। उन्होंने चिंता जताई कि चयन प्रक्रिया न्यायपालिका के "भगवाकरण" की ओर बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि वर्तमान चयन प्रक्रिया मूल रूप से " सामाजिक न्याय के विरुद्ध है और इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए।"

तिरुमावलवन ने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए जो सूची मद्रास हाई कोर्ट कॉलेजियम ने भेजी है, उसमें दलित समुदाय के किसी भी वकील को जगह नहीं मिली है। यह बहुत गलत बात है। उन्होंने कहा कि यह अन्याय है और यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कॉलेजियम से कहा कि वे इस चयन के तरीके को ठीक करें। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियों और पिछड़ा वर्ग के लोगों को जजों के पद पर कम मौका मिल रहा है। उन्हें और मौके मिलने चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि जजों के लिए जिन लोगों के नाम भेजे गए हैं, उनमें ज्यादातर भाजपा और आरएसएस के समर्थक वकील हैं। उन्हें डर है कि कहीं न्यायपालिका का "भगवाकरण" न हो जाए। उन्होंने कहा कि जजों को चुनने का यह तरीका सामाजिक न्याय के खिलाफ है और इसकी कड़ी निंदा होनी चाहिए।