बहू का रहने का अधिकार मालिकाना हक नहीं: HC

नवभारत टाइम्स
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दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि बहू का ससुराल में रहने का अधिकार सुरक्षा के लिए है, मालिकाना हक के लिए नहीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार बुजुर्ग माता-पिता के शांतिपूर्ण जीवन पर भारी नहीं पड़ सकता।

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नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक महिला का साझा संपत्ति में रहने का अधिकार सिर्फ सुरक्षा के लिए है, न कि हमेशा के लिए कब्जा जमाने का। कोर्ट ने साफ किया कि यह अधिकार सीनियर सिटीजन्स को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं होना चाहिए। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि इस अधिकार को बुजुर्ग माता-पिता के अपनी संपत्ति पर शांति से रहने के अधिकार के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने एक मामले में कहा कि बहू को सास-ससुर के घर पर हमेशा रहने का हक नहीं है, खासकर तब जब उसका साथ रहना उनकी सेहत और इज्जत के लिए ठीक न हो। कोर्ट का मानना है कि रहने के अधिकार का मतलब यह नहीं कि मालिक अपनी प्रॉपर्टी का शांति से इस्तेमाल न कर सके। खासकर तब जब बिना किसी शक के यह साबित हो जाए कि बहू के रहने से सीनियर सिटीजन की तबीयत और बिगड़ रही है।
यह फैसला एक बहू और अन्य के मामले में आया। कोर्ट ने एक पुरानी बेंच के फैसले का हवाला दिया। इस फैसले में कहा गया था कि रहने का अधिकार बहू को सास-ससुर के घर पर हमेशा के लिए रहने का लाइसेंस नहीं देता। यह तब और भी जरूरी हो जाता है जब लगातार साथ रहना उनकी सेहत और इज्जत के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा हो।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी व्यक्ति का अपनी प्रॉपर्टी पर शांति से रहने का अधिकार कम नहीं होना चाहिए। यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब यह साफ हो जाए कि किसी के रहने से बुजुर्गों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 17 के तहत महिला को जो अधिकार मिला है, वह एक सुरक्षा कवच की तरह है। यह अधिकार किसी को भी ससुराल वालों की जगह पर अनिश्चित काल तक कब्जा करने की इजाजत नहीं देता।

यह फैसला उन मामलों में महत्वपूर्ण है जहां बुजुर्ग माता-पिता को अपनी ही संपत्ति में बहू या किसी अन्य रिश्तेदार के साथ रहने में परेशानी होती है। कोर्ट ने साफ किया कि ऐसे मामलों में बुजुर्गों के आराम और शांति को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह फैसला सीनियर सिटीजन्स के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें अपनी संपत्ति पर शांतिपूर्ण जीवन जीने का मौका देता है।

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