BSF के फ्रंटियर (स्पेशल ऑपरेशंस) ओडिशा के IG श्रीवास्तव ने BSF के स्थापना दिवस (1 दिसंबर) से पहले यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए BSF की छह बटालियन ओडिशा में माओवादी विरोधी अभियानों में जुटी हैं। वे अलग-अलग रणनीतियों का इस्तेमाल कर रही हैं।BSF की योजना में ओडिशा पुलिस और खुफिया एजेंसियों के साथ तालमेल बढ़ाना शामिल है। साथ ही, ड्रोन और सैटेलाइट निगरानी जैसी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार कार्यक्रमों के जरिए स्थानीय समुदायों से जुड़ाव को मजबूत किया जाएगा। श्रीवास्तव ने कहा, "इसलिए, हमारी पुनर्नियोजन, लगातार लंबे समय तक चलने वाले अभियान और प्रौद्योगिकी का उपयोग, यह सब मिलकर अब तय समय सीमा के भीतर लक्ष्य हासिल करने के लिए पूरी गति से काम कर रहा है। और हमें पूरा यकीन है कि हम इसे हासिल कर लेंगे।"
उन्होंने माओवादी विरोधी अभियानों में ओडिशा पुलिस के अटूट समर्थन के लिए खुशी जाहिर की। साल 2010 में BSF को ओडिशा में तैनात किया गया था। तब पांच बटालियन को माओवाद प्रभावित कोरापुट और मलकानगिरी जिलों में लगाया गया था। उस समय नक्सली हिंसा अपने चरम पर थी।
इस साल BSF ने बड़ी मात्रा में माओवादी सामग्री बरामद की है। इसमें 10 IED (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस - यानी घर में बने बम), आठ हथियार, 640 डेटोनेटर, दो ग्रेनेड, 171 जिलेटिन स्टिक, 148 जिंदा कारतूस और 260 ग्राम विस्फोटक शामिल हैं। IED एक ऐसा बम होता है जिसे कहीं भी आसानी से बनाया जा सकता है और यह बहुत खतरनाक होता है।
BSF ने स्थानीय लोगों से जुड़ने के लिए कई कार्यक्रम भी चलाए हैं। इनमें आदिवासी युवाओं के लिए एक्सचेंज प्रोग्राम, सिविक एक्शन प्रोग्राम (नागरिकों के लिए कार्यक्रम), प्रदर्शनियां और जिला स्तरीय रोजगार मेले शामिल हैं। इन कार्यक्रमों का मकसद माओवादियों के साथियों और रिश्तेदारों को मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रेरित करना है, ताकि वे कानून प्रवर्तन एजेंसियों के सामने आत्मसमर्पण कर सकें।
BSF IG ने स्वीकार किया कि काफी प्रगति के बावजूद कुछ चुनौतियां अभी भी बाकी हैं। खासकर कालाहांडी, कंधमाल और बौध के घने जंगलों में माओवादियों की मौजूदगी और IED का खतरा बना हुआ है। उन्होंने कहा, "2010 से, 14 BSF जवानों ने राज्य में माओवादियों से लड़ते हुए देश के सम्मान की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। ओडिशा, जो कभी नक्सली हिंसा का पर्याय था, अब एक उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ रहा है।"

