यह मामला दिसंबर 2022 में शुरू हुआ था, जब ड्रोनआचार्य एरियल इनोवेशंस SME (Small and Medium Enterprises) सेगमेंट में लिस्ट हुई थी। उस समय यह कंपनी काफी चर्चा में थी, खासकर अपने शुरुआती निवेशकों की वजह से। इनमें बॉलीवुड के बड़े नाम जैसे रणबीर कपूर और आमिर खान, साथ ही शेयर बाजार के जाने-माने व्यक्ति शंकर शर्मा भी शामिल थे। कंपनी का IPO (Initial Public Offering) 244 गुना सब्सक्राइब हुआ था, जो भारत में ड्रोन सेक्टर में चल रहे उत्साह को दर्शाता है।लेकिन दो साल बाद, सेबी ने एक बिल्कुल अलग कहानी सामने रखी है। सेबी ने अपने विस्तृत आदेश में साफ कहा है कि ड्रोनआचार्य ने IPO के पैसों को दूसरी जगह लगाया। कंपनी ने अपने वित्तीय नतीजों को भी सही ढंग से पेश नहीं किया। इसके अलावा, लिस्टिंग के बाद शेयर की कीमतों को जानबूझकर बढ़ाने के लिए कंपनी की घोषणाओं का इस्तेमाल किया गया। सेबी के अनुसार, इस धोखाधड़ी से IPO से पहले के निवेशकों को "हेरफेर की गई कीमतों" पर अपने शेयर बेचने का मौका मिला, जबकि आम निवेशक जोखिम में पड़ गए।
सेबी ने यह भी पाया कि ड्रोनआचार्य ने प्राइवेट प्लेसमेंट के जरिए ऑप्शनली कनवर्टिबल प्रेफरेंस शेयर्स (OCPS) जारी किए थे। इससे IPO से पहले के निवेशकों से करीब 32.35 करोड़ रुपये जुटाए गए थे। इन निवेशकों को यह कहकर लुभाया गया था कि उनके शेयर जल्द ही लिस्ट होंगे, जिससे बड़े नामों ने इसमें पैसा लगाया। हालांकि, जब यह फंड जुटाया जा रहा था, तब कंपनी लगभग निष्क्रिय थी, उसका कोई खास कारोबार नहीं था और वित्तीय वर्ष 2021 तक कंपनी घाटे में चल रही थी।
कंपनी के राजस्व में अचानक भारी उछाल देखा गया। वित्तीय वर्ष 2022 में जहां 3.58 करोड़ रुपये का राजस्व था, वहीं वित्तीय वर्ष 2023 में यह बढ़कर 18.56 करोड़ रुपये और वित्तीय वर्ष 2024 में 35.19 करोड़ रुपये हो गया। लेकिन यह राजस्व वृद्धि मजबूत कैश फ्लो के साथ नहीं आई। सेबी को पता चला कि ड्रोनआचार्य का ऑपरेटिंग कैश फ्लो लगातार तीन साल तक नकारात्मक रहा। इसका मुख्य कारण बढ़ते ट्रेड रिसीवेबल्स (ग्राहकों से मिलने वाला पैसा) और इंटर-कॉर्पोरेट एडवांसेज (कंपनियों के बीच दिए गए कर्ज) थे। कंपनी का एकमात्र सकारात्मक कैश फ्लो प्राइवेट प्लेसमेंट और IPO से ही आया था। सेबी का कहना है कि कंपनी ने IPO से मिले पैसों का इस्तेमाल वर्किंग कैपिटल के तौर पर किया, बजाय इसके कि वह अपने कारोबार से टिकाऊ कैश कमाए।
सेबी के मुताबिक, ड्रोनआचार्य ने भ्रामक घोषणाएं कीं, जिससे निवेशकों को कंपनी के कारोबार में अच्छी प्रगति का झूठा आभास हुआ। इससे शेयर की कीमत को सहारा मिला और शुरुआती निवेशकों को अपने शेयर बेचने का मौका मिल गया। सेबी का कहना है कि ये IPO से पहले के शेयरधारक ऊंचे मूल्यांकन पर अपने शेयर बेचने में कामयाब रहे, जो कंपनी के बुनियादी ढांचे के हिसाब से सही नहीं था। दूसरी ओर, रिटेल निवेशकों ने शेयर बाजार में ऊंचे दामों पर खरीदारी की और जब यह सारा उत्साह खत्म हुआ, तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ा।
यह मामला SME सेगमेंट में गवर्नेंस (प्रशासन) और पारदर्शिता की कमी को भी उजागर करता है। इन लिस्टिंग में अक्सर कम खुलासे और छोटे परिचालन इतिहास के बावजूद रिटेल निवेशकों की भारी दिलचस्पी देखी जाती है। हालांकि, 75 लाख रुपये का जुर्माना और दो साल का प्रतिबंध काफी बड़ी सजा है, लेकिन इसका सबसे बड़ा असर निवेशकों के भरोसे पर पड़ सकता है। यह मामला उन रिटेल खरीदारों के लिए सवाल खड़े करता है जो अक्सर कंपनी की टिकाऊ मुनाफा कमाने और कैश फ्लो बनाने की क्षमता का ठीक से विश्लेषण किए बिना, सिर्फ ब्रांडिंग, मीडिया की चर्चा या सेलिब्रिटी के नाम पर SME लिस्टिंग के पीछे भागते हैं।

