स्कूलों में परीक्षाओं की तैयारी के लिए शिक्षकों को तलाश रहे छात्र

नवभारत टाइम्स
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परीक्षाओं की तैयारी के अहम समय में छात्र स्कूलों में शिक्षक नहीं पा रहे हैं। शिक्षक बीएलओ ड्यूटी और स्कूल न आने वाले बच्चों को ढूंढने में लगे हैं। इससे पढ़ाई प्रभावित हो रही है। कई स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। कुछ स्कूलों में अतिरिक्त शिक्षक हैं, जिन्हें कमी वाले स्कूलों में भेजा जाएगा।

teachers not available in schools amidst exams students distressed teachers engaged in blo duty and searching for dropouts
सोनिया, गुड़गांव में फाइनल परीक्षाओं की तैयारी के बीच स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी छात्रों के भविष्य पर सवालिया निशान लगा रही है। छात्र शिक्षकों को ढूंढ रहे हैं, लेकिन शिक्षक बीएलओ ड्यूटी और ड्रॉप आउट छात्रों को खोजने जैसे गैर-शैक्षणिक कामों में उलझे हुए हैं। ऐसे में, पढ़ाई के इस अहम समय में शिक्षकों को पढ़ाने के बजाय खोजबीन का काम करना पड़ रहा है, जिससे परीक्षाओं की तैयारी पर गहरा असर पड़ रहा है। शिक्षकों का कहना है कि अतिरिक्त जिम्मेदारियों के चलते वे क्लास में पढ़ा नहीं पा रहे हैं, जबकि पहले से ही स्कूलों में शिक्षकों की कमी है।

फाइनल परीक्षाओं में बस तीन महीने बचे हैं, लेकिन गुड़गांव के स्कूलों में स्थिति चिंताजनक है। छात्र शिक्षकों की तलाश कर रहे हैं, पर शिक्षक बीएलओ ड्यूटी में व्यस्त हैं। जो शिक्षक स्कूल आते भी हैं, वे उन छात्रों को ढूंढने में लगे हैं जिन्होंने बीच में ही स्कूल छोड़ दिया है। ऐसे में, यह सोचना मुश्किल है कि परीक्षाओं की तैयारी कैसे हो रही होगी। पढ़ाई के इस महत्वपूर्ण दौर में शिक्षकों को पढ़ाने की बजाय इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। शिक्षकों का कहना है कि उन्हें कई अतिरिक्त काम सौंपे गए हैं, जिसकी वजह से वे क्लास में पढ़ा नहीं पा रहे हैं। पहले से ही स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, और अब कोई बीएलओ के काम में लगा है तो कोई ऑफिस के कामों में उलझा हुआ है।
स्कूलों में इस सेशन में दाखिला लेने वाले वे छात्र जो कुछ महीने आने के बाद अब स्कूल नहीं आ रहे हैं, उन्हें ढूंढा जा रहा है। इन छात्रों को खोजने के लिए शिक्षक गांवों और कॉलोनियों के चक्कर लगा रहे हैं। वे छात्रों के परिवारों से बात करके यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं। अगर इस समय भी छात्र स्कूल नहीं पहुंचे, तो परीक्षा परिणामों पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। वहीं, अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों में क्लास में शिक्षक नहीं मिलते। अब वे बच्चों को ट्यूशन के लिए भेज रहे हैं, जिससे उन पर पैसों का बोझ बढ़ रहा है।

शहर के प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में शिक्षकों की सबसे ज्यादा कमी है। अभी तक ट्रांसफर ड्राइव न चलने के कारण स्कूलों में पूरा स्टाफ भी नहीं है। कई स्कूलों में तो सिर्फ दो से तीन ही स्टाफ हैं, जबकि वहां पर पांच से छह स्टाफ की जरूरत है। जिला स्तर पर शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूलों में डेपुटेशन पर शिक्षक भेजे गए हैं, लेकिन वे भी काफी नहीं हैं। फर्रुखनगर स्थित गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल के हेड अशोक कुमार का कहना है कि फाइनल परीक्षाओं के शुरू होने में सिर्फ तीन महीने बचे हैं। इस बीच स्कूल असेसमेंट टेस्ट लेकर निपुण मिशन के तहत छात्रों का सेंसस असेसमेंट भी कराएंगे। ऐसे में, शिक्षकों की बीएलओ समेत अन्य गैर-शैक्षणिक कार्यों में ड्यूटी नहीं लगाई जानी चाहिए। शिक्षक स्कूल में रहेंगे तभी छात्रों की पढ़ाई बेहतर तरीके से हो पाएगी।

जिले के कई सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या के मुकाबले ज्यादा शिक्षक हैं। इनका डेटा अपलोड कराया जा रहा है। जहां-जहां शिक्षकों की कमी है, वहां पर ट्रांसफर ड्राइव में शिक्षक भेजे जाएंगे। बता दें कि जिले के कई स्कूल ऐसे हैं जहां पर एक या दो ही शिक्षक के भरोसे स्कूल चल रहे हैं, हालांकि यहां पर छात्रों की संख्या भी कम है। इस बार ट्रांसफर ड्राइव में हर स्कूल को शिक्षक मिलने की उम्मीद है जहां पर शिक्षकों की कमी है।

शिक्षकों का कहना है कि उन्हें कई अतिरिक्त जिम्मेदारियां दी गई हैं, जिसके चलते वे क्लास में पढ़ाई नहीं करा पा रहे हैं। पहले से ही स्कूलों में शिक्षकों की कमी है और अब कोई बीएलओ के काम में लगा है तो कोई ऑफिस वर्क में उलझा हुआ है। यह स्थिति छात्रों के भविष्य के लिए चिंताजनक है।

गांव-गांव जाकर ड्रॉप आउट छात्रों को ढूंढा जा रहा है। जो छात्र इस सेशन में दाखिला लेने के बाद दो-तीन महीने आकर अब स्कूल नहीं आ रहे हैं, उनकी तलाश की जा रही है। शिक्षकों को इन छात्रों को ढूंढने के लिए गांव और कॉलोनियों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। वे छात्रों के परिवारों से बात कर यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं। अगर इस समय भी छात्र स्कूल नहीं पहुंचे, तो परीक्षा परिणामों पर इसका असर पड़ सकता है।

अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों में क्लास में शिक्षक नहीं मिल रहे हैं। अब बच्चों को ट्यूशन के लिए भेजना पड़ रहा है, जिससे उन पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। यह एक गंभीर समस्या है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।

प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की सबसे ज्यादा कमी है। शहर के प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में शिक्षकों की काफी कमी है। अभी तक ट्रांसफर ड्राइव न चलने से स्कूलों में पूरा स्टाफ तक नहीं है। कई स्कूलों में तो दो से तीन ही स्टाफ हैं जबकि वहां पर पांच से छह स्टाफ की जरूरत है। जिला स्तर पर शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूलों में डेपुटेशन पर शिक्षक भेजे गए हैं जोकि नाकाफी हैं।

फर्रुखनगर स्थित गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल के हेड अशोक कुमार ने कहा कि फाइनल परीक्षाओं के शुरू होने में केवल तीन महीने का ही बचे हैं। इस बीच स्कूल असेसमेंट टेस्ट लेकर निपुण मिशन के तहत छात्रों का सेंसस असेसमेंट भी कराया जाएगा। ऐसे में, शिक्षकों की बीएलओ समेत अन्य गैर-शैक्षणिक कार्यों में ड्यूटी नहीं लगाई जानी चाहिए। शिक्षक स्कूल में रहेंगे तभी छात्रों की पढ़ाई बेहतर तरीके से हो पाएगी।

जिले के कई स्कूलों में सरप्लस शिक्षक हैं। जिले के कई सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या के मुकाबले अधिक शिक्षक हैं। इनका डेटा अपलोड कराया जा रहा है। जहां-जहां शिक्षकों की कमी है, वहां पर ट्रांसफर ड्राइव में शिक्षक भेजे जाएंगे। बता दें कि जिले के कई स्कूल ऐसे हैं जहां पर एक या दो ही शिक्षक के भरोसे स्कूल चल रहे हैं, हालांकि यहां पर छात्रों की संख्या भी कम है। इस बार ट्रांसफर ड्राइव में हर स्कूल को शिक्षक मिलने की उम्मीद है जहां पर शिक्षकों की कमी है।

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