26 नवंबर को विशेष POCSO जज कविता शिरभते ने कहा कि अपराध साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय सबूत नहीं था। उन्होंने माना कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा। इसलिए, उन्होंने आरोपी को बरी कर दिया और उसे जेल से रिहा कर दिया गया।यह मामला अगस्त 2018 में शुरू हुआ था। तब पीड़िता की नानी की बहन ने कोंढवा पुलिस से संपर्क किया था। उन्होंने पुलिस को बताया कि उनकी बहन की पोती, जो उस समय 11 साल की थी, ने उन्हें मार्च 2017 से अपने पिता द्वारा लगातार यौन उत्पीड़न की बात बताई थी।
इसके बाद पुलिस ने IPC और POCSO एक्ट की कई धाराओं के तहत FIR दर्ज की। इसमें गंभीर यौन उत्पीड़न, बार-बार बलात्कार, आपराधिक धमकी और हमला जैसे आरोप शामिल थे। पुलिस ने जांच पूरी कर चार्जशीट भी दाखिल की थी।
हालांकि, मुकदमे के दौरान, तीनों मुख्य गवाहों - शिकायतकर्ता (नानी की बहन), नाबालिग लड़की और उसकी मां - ने अदालत में पूरी तरह से पलटवार किया। उन्होंने साफ इनकार कर दिया कि कोई भी यौन उत्पीड़न हुआ था। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी वाकया कभी नहीं हुआ और न ही उन्होंने कभी किसी दुर्व्यवहार के बारे में सुना था। खुद पीड़िता ने भी किसी भी हमले या धमकी से साफ इनकार कर दिया।
जज ने अपने फैसले में कहा, "न तो पीड़िता की मां और न ही उसकी नानी की बहन ने कहा कि ऐसी कोई घटना हुई थी। लड़की की ओर से ऐसा कोई खुलासा नहीं हुआ कि आरोपी ने उसके साथ बार-बार यौन उत्पीड़न या बलात्कार किया हो।"
जज ने यह भी देखा कि गवाहों की गवाही के अलावा, पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपों का समर्थन करने के लिए कोई मेडिकल, फोरेंसिक या स्वतंत्र दस्तावेजी सबूत नहीं था। एक मेडिकल आयु सत्यापन रिपोर्ट में यह तो साबित हुआ कि कथित घटना के समय लड़की नाबालिग थी, लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल उम्र साबित करना, उत्पीड़न के सबूत के बिना, अपर्याप्त है। इस तरह, सबूतों के अभाव में, अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया।

