तेलंगाना हाई कोर्ट: अनुकंपा नियुक्ति के नियम सख्त, फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी नहीं

TOI.in
Subscribe

तेलंगाना हाई कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के नियमों को कड़ा किया है। कोर्ट ने कहा कि नौकरी का मकसद परिवार की तत्काल मदद करना है। फर्जी दस्तावेजों के सहारे नौकरी नहीं मिलेगी। एक विधवा की नौकरी की अर्जी खारिज कर दी गई। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी की मौत के सालों बाद नौकरी देना योजना के उद्देश्य के विरुद्ध है।

telangana high courts strict decision no compassionate appointment on fake documents action against rule violators
हैदराबाद: तेलंगाना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति (compassionate appointment) का मकसद परिवार की तत्काल परेशानी को दूर करना है, न कि इसे अनिश्चित काल तक बढ़ाना। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि ऐसे मामलों में अविश्वसनीय दस्तावेजों का सहारा नहीं लिया जा सकता। एक विधवा की नौकरी की अर्जी को खारिज करते हुए, कोर्ट ने एक सिंगल जज के उस आदेश को पलट दिया जिसमें विश्वविद्यालय को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने का निर्देश दिया गया था।

चीफ जस्टिस अपारेश कुमार सिंह और जस्टिस जीएम मोहिउद्दीन की डिविजन बेंच ने श्री कोंडा लक्ष्मण तेलंगाना हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी की अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। बेंच ने पाया कि सिंगल जज ने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों को सही ढंग से लागू नहीं किया था। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जिस दस्तावेज के आधार पर समय पर अर्जी देने का दावा किया था, वह "अविश्वसनीय था और उसमें साफ तौर पर छेड़छाड़ के संकेत थे।"
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए, बेंच ने दोहराया कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य अचानक आई आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार को फौरन सहारा देना है। कर्मचारी की मौत के करीब 14 साल बाद नौकरी देना, इस योजना के मूल उद्देश्य को ही खत्म कर देगा।

यह मामला याचिकाकर्ता के पति की 2 अप्रैल, 2011 को हुई मौत से जुड़ा है। संबंधित योजना के तहत, अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन मौत के एक साल के भीतर करना होता है। पति की मौत के समय वे जेवीआर हॉर्टिकल्चर रिसर्च स्टेशन, महबूबनगर में टाइम स्केल वर्कर के तौर पर 24 साल से ज्यादा की सेवा दे चुके थे।

यूनिवर्सिटी का कहना था कि याचिकाकर्ता की पहली वैध अर्जी 20 मार्च, 2013 को मिली, जो पति की मौत के लगभग दो साल बाद थी। इसलिए, इसे समय-सीमा पार होने के कारण खारिज कर दिया गया था।

हालांकि, याचिकाकर्ता का दावा था कि उन्होंने 20 सितंबर, 2011 को ही एक अर्जी दे दी थी। लेकिन डिविजन बेंच को यह दावा तथ्यात्मक रूप से गलत लगा। कोर्ट ने पाया कि कथित 2011 की अर्जी पर जो मुहर लगी थी, उस पर हस्ताक्षर 20 सितंबर, 2014 की तारीख के थे। इससे साफ जाहिर होता है कि यह दस्तावेज बाद में तैयार किया गया था।

बेंच ने यह भी गौर किया कि याचिकाकर्ता ने 2014 में दायर अपनी मूल याचिका में इस कथित 2011 की अर्जी का जिक्र तक नहीं किया था। उन्होंने इसे बाद में एक अतिरिक्त दलील के तौर पर पेश किया। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता निर्धारित समय-सीमा के भीतर आवेदन करने का सबूत पेश करने में नाकाम रहीं और उन्होंने जाली दस्तावेजों का सहारा लिया। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने सिंगल जज के आदेश को रद्द कर दिया। अनुकंपा नियुक्ति का मकसद परिवार को तुरंत राहत देना है, न कि सालों बाद नौकरी देना। यह फैसला उन लोगों के लिए एक सबक है जो नियमों को तोड़-मरोड़ कर फायदा उठाना चाहते हैं। कोर्ट ने साफ कर दिया कि ऐसे मामलों में दस्तावेजों की प्रामाणिकता बहुत जरूरी है।

अगला लेख

Storiesकी ताजा खबरें, ब्रेकिंग न्यूज, अनकही और सच्ची कहानियां, सिर्फ खबरें नहीं उसका विश्लेषण भी। इन सब की जानकारी, सबसे पहले और सबसे सटीक हिंदी में देश के सबसे लोकप्रिय, सबसे भरोसेमंद Hindi Newsडिजिटल प्लेटफ़ॉर्म नवभारत टाइम्स पर