यह आशंका इसलिए उठती है क्योंकि केबिन क्रू और पायलटों की कमी को अचानक पूरा नहीं किया जा सकता। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एयरलाइंस इस संकट का इंतजार कर रही थी ताकि उसे नियमों में छूट मिल सके? भारतीय विमानन क्षेत्र में इस समय इंडिगो की बाजार हिस्सेदारी 65% है। उसके बेड़े में 417 विमान हैं और सामान्य दिनों में हर दिन 2200 उड़ानें भरी जाती हैं।सरकार ने फिलहाल नए नियमों में थोड़ी रियायत दी है ताकि स्थिति सामान्य हो सके। फौरी तौर पर जनता को राहत देने के लिए यह भले ही सही हो, लेकिन नए FDTL नियमों से किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जाना चाहिए। ये नियम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं और पायलटों की सेहत व उड़ान सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी हैं।
सरकार ने इंडिगो से जवाब मांगा है, लेकिन यह समय नीतियों के मूल्यांकन का भी है। अगर कंपनी नए नियमों के लिए तैयारी नहीं कर रही थी, तो क्या अथॉरिटीज को इसकी खबर नहीं थी? क्या DGCA के निगरानी सिस्टम में सुधार की जरूरत है? मौजूदा संकट हमें याद दिलाता है कि किसी भी क्षेत्र में एकाधिकार होना कितना खतरनाक हो सकता है। वहीं, जब कंपनियों के बीच अच्छी प्रतिस्पर्धा होती है, तो ग्राहकों को वाजिब कीमत पर अच्छी सर्विस मिलती है। देश में हवाई क्षेत्र की तरक्की की रफ्तार बहुत अच्छी है। यह आगे भी बनी रहे और यात्रियों को भी अच्छी सेवा मिले, इसके लिए केंद्र को और क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर भी गौर करना चाहिए।
यह पूरा मामला इंडिगो की तरफ से बरती गई लापरवाही को दिखाता है। DGCA ने फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) के नए नियम बनाए थे। इन नियमों का मतलब था कि पायलट और केबिन क्रू कितने घंटे काम कर सकते हैं, इसकी सीमा तय की गई थी। यह इसलिए किया गया था ताकि वे थके नहीं और उड़ानें सुरक्षित रहें। सभी एयरलाइंस को इन नियमों को मानने के लिए काफी समय दिया गया था। लेकिन, इंडिगो ने समय रहते अपने स्टाफ को नहीं बढ़ाया। जब नए नियम लागू हुए, तो उनके पास पर्याप्त पायलट और क्रू नहीं थे। इस वजह से उनकी कई उड़ानें रद्द होने लगीं या उनमें देरी होने लगी।
इंडिगो का बाजार में दबदबा बहुत ज्यादा है। 65% बाजार हिस्सेदारी का मतलब है कि ज्यादातर लोग इंडिगो से ही सफर करते हैं। जब ऐसी बड़ी एयरलाइन नियमों का पालन नहीं करती, तो पूरे सिस्टम पर असर पड़ता है। सरकार ने अब एक कमेटी बनाई है। यह कमेटी जांच करेगी कि क्या इंडिगो ने जानबूझकर ऐसा किया। क्या वे चाहते थे कि जब संकट आए, तो सरकार नियमों में ढील दे। यह एक गंभीर आरोप है।
यह समझना जरूरी है कि पायलट और क्रू की ट्रेनिंग में समय लगता है। आप रातों-रात हजारों पायलट या क्रू तैयार नहीं कर सकते। इसलिए, अगर कोई एयरलाइन पहले से तैयारी नहीं करती, तो यह उसकी बड़ी गलती मानी जाएगी। सरकार ने फिलहाल थोड़ी राहत दी है ताकि यात्रियों को परेशानी न हो। लेकिन, यह राहत अस्थायी है। FDTL नियमों से समझौता नहीं किया जा सकता। ये नियम पायलटों की सेहत और यात्रियों की सुरक्षा के लिए बहुत अहम हैं।
यह घटना हमें सिखाती है कि किसी एक कंपनी का बहुत ज्यादा दबदबा अच्छा नहीं होता। जब बाजार में कई कंपनियां होती हैं, तो वे एक-दूसरे से बेहतर करने की कोशिश करती हैं। इससे यात्रियों को फायदा होता है। उन्हें सस्ती टिकटें मिलती हैं और सर्विस भी अच्छी मिलती है। भारत में हवाई यात्रा का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है। इसे ऐसे ही आगे बढ़ाते रहने और यात्रियों को बेहतर सुविधा देने के लिए सरकार को और भी सोचना होगा। DGCA को भी अपनी निगरानी व्यवस्था को मजबूत करना होगा ताकि ऐसी स्थिति दोबारा न आए।


