ख़ुद को जानना है आध्यात्मिक यात्रा का पहला उद्देश्य

Contributed byदादाश्री जी|नवभारत टाइम्स
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जीवन में सच्चा 'मैं' ही महत्वपूर्ण है। हम अक्सर समाज के सामने बेहतर दिखने के लिए झूठे मुखौटे पहन लेते हैं। यह व्यवहार हमें भीतर से कमजोर करता है। आध्यात्मिकता का पहला कदम इस झूठेपन को पहचानना और छोड़ना है। हमें अपनी मौलिकता में ही संपूर्णता ढूंढनी चाहिए। सत्य को थामें और मुखौटा छोड़ें।

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हममें से ज्यादातर लोग जिंदगी भर एक अनजाना बोझ उठाते हैं, वो है झूठे मुखौटे का बोझ। समाज में अच्छा दिखने, बड़ा बनने या सबको खुश करने की चाहत में हम अपनी असलियत से दूर हो जाते हैं। हम अपनी कमियां छुपाते हैं, खूबियां बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं और अक्सर रो-धोकर दूसरों का ध्यान खींचने की आदत बना लेते हैं। यह attention seeking व्यवहार हमें अंदर से कमजोर करता है और हमारी खुशियां और सुकून छीन लेता है।

आध्यात्मिकता की पहली सीढ़ी यही है कि हम इस झूठेपन को पहचानें और इसे छोड़ दें। इसका मतलब यह नहीं कि हम महान बन जाएं, बल्कि हमें एक सीधा-सादा और सच्चा इंसान बनना है। हमें किसी की नकल नहीं करनी है और न ही आध्यात्मिकता का दिखावा करना है। कपड़े, टीका, माला या लंबा-चौड़ा भाषण किसी को आध्यात्मिक नहीं बनाते। असल आध्यात्मिकता तो अंदर की सादगी, प्यार और दया से ही पैदा होती है।
हम किसी और की तरह नहीं बन सकते। हम जैसे हैं, अपनी मौलिकता में ही पूरे हैं। इसलिए, जिंदगी में अपने सच्चे 'मैं' को पहचानें, जहाँ प्यार, भक्ति और खुशी है। और छोड़ दें - रोना-धोना, बड़ा बनने का दिखावा करना और किसी की नकल करने की आदत। यही अंदरूनी बदलाव का असली राज है - सत्य को थामें, मुखौटा छोड़ें।

यह झूठा मुखौटा हमें समाज में बेहतर दिखाने के लिए पहनना पड़ता है। हम सोचते हैं कि अगर हम अपनी असली पहचान दिखाएंगे तो लोग हमें पसंद नहीं करेंगे। इसलिए हम अपनी गलतियों को छुपाते हैं और अपनी खूबियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। कभी-कभी तो हम दूसरों का ध्यान खींचने के लिए दुखड़ा भी रोते हैं। यह सब हमें अंदर से खोखला बना देता है और हमारी असली खुशी छीन लेता है।

आध्यात्मिकता हमें सिखाती है कि हमें इस दिखावे को छोड़ना होगा। हमें खुद को वैसे ही स्वीकार करना होगा जैसे हम हैं। महान बनने का मतलब यह नहीं कि हम दूसरों से अलग दिखें, बल्कि इसका मतलब है कि हम सच्चे और ईमानदार बनें।

आध्यात्मिकता का मतलब यह नहीं कि हम खास तरह के कपड़े पहनें, माथे पर टीका लगाएं या माला पहनें। यह सब बाहरी चीजें हैं। असली आध्यात्मिकता तो हमारे दिल में होती है। यह हमारे अंदर के प्यार, करुणा और सादगी से आती है।

हम सब अपनी-अपनी तरह से खास हैं। हम किसी और की तरह नहीं बन सकते। इसलिए, हमें अपनी असलियत को पहचानना चाहिए। जहाँ सच्चा प्यार, भक्ति और आनंद है, उस 'मैं' को पकड़ना चाहिए। और रोने, दिखावा करने और नकल करने की आदत को छोड़ देना चाहिए। यही हमारे अंदर बदलाव लाने का सबसे अच्छा तरीका है। सच को अपनाएं और झूठे मुखौटे को उतार फेंकें।

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