नई दिल्ली: ई-कॉमर्स कंपनी मीशो (Meesho) अपने आगामी IPO के ज़रिए ₹480 करोड़ सिर्फ अपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML) और टेक्नोलॉजी टीमों के वेतन पर खर्च करने की योजना बना रही है। यह रकम न केवल अपने आप में बहुत बड़ी है, बल्कि हाल के भारतीय टेक लिस्टिंग में कर्मचारियों के वेतन पर किए जाने वाले सबसे बड़े खर्चों में से एक है। 2,000 से ज़्यादा स्थायी कर्मचारियों वाली मीशो के इस फैसले से निवेशकों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि क्या कंपनी अपनी संचालन लागत को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है, या फिर वह अपने भविष्य की सफलता के लिए ज़रूरी टेक टैलेंट पर दांव लगा रही है। कंपनी का कहना है कि यह फैसला भविष्य की ज़रूरतों को देखते हुए लिया गया है।टेक इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश की तैयारी
मीशो के IPO से मिलने वाले पैसे का एक बड़ा हिस्सा टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने में लगाया जाएगा। ₹480 करोड़ जहाँ कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होंगे, वहीं ₹1,390 करोड़ क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर पर और ₹1,020 करोड़ मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर खर्च किए जाएंगे। यह खर्च प्रोफाइल आने वाले प्लेटफॉर्म IPOs में सबसे ज़्यादा टेक्नोलॉजी और ग्रोथ पर केंद्रित है। मीशो का मानना है कि भारत में ई-कॉमर्स का भविष्य डेटा, ऑटोमेशन और पर्सनलाइज्ड डिस्कवरी पर ही टिका होगा।
IPO के पैसे से सैलरी पर सवाल?
हालांकि, IPO के पैसों का इस्तेमाल सीधे तौर पर सैलरी देने के लिए करना निवेशकों के लिए चिंता का विषय हो सकता है। निवेशक अक्सर चाहते हैं कि IPO से मिला पैसा एसेट्स खरीदने, प्रोडक्ट बढ़ाने या ज़्यादा ग्राहक जोड़ने में लगे, न कि कर्मचारियों के खर्चों पर। खासकर तब, जब कंपनी अभी तक लगातार मुनाफा नहीं कमा पा रही हो। मीशो का रेवेन्यू तो बढ़ा है, FY23 में ₹5,730 करोड़ से बढ़कर FY25 में ₹9,390 करोड़ हो गया है, लेकिन कंपनी अभी भी घाटे में है। Q1 FY26 में एक बार के रीस्ट्रक्चरिंग और ESOP (कर्मचारी स्टॉक ऑप्शन प्लान) के खर्चों के कारण घाटा और भी बढ़ गया। इससे कंपनी की कमाई की विज़िबिलिटी पर सवाल उठ रहे हैं और सैलरी का यह बड़ा आवंटन इस बहस को और जटिल बना देता है।
मीशो के बिजनेस मॉडल की ज़रूरत
विश्लेषकों का कहना है कि मीशो के इस फैसले को समझने के लिए उसके बिजनेस मॉडल को देखना ज़रूरी है। मीशो भारत के सबसे बड़े डेटा-आधारित कंज्यूमर मार्केटप्लेस में से एक है। यह सालाना करीब 1.8 अरब ऑर्डर संभालता है, जिसके 214 मिलियन एक्टिव यूज़र्स और 575,000 से ज़्यादा सेलर्स हैं। मीशो का "एवरीडे लो प्राइस" (हर दिन कम कीमत) मॉडल एल्गोरिथम प्राइसिंग, फ्रॉड डिटेक्शन, डिमांड फोरकास्टिंग और लॉजिस्टिक्स ऑप्टिमाइजेशन पर बहुत बड़े पैमाने पर निर्भर करता है। मीशो ने एक ऐसा सिस्टम बनाया है जहाँ डिस्कवरी, कंटेंट, प्राइसिंग और डिलीवरी सब कुछ हाई-वेलोसिटी मशीन-लर्निंग सिस्टम पर चलता है। ऐसे में, अपनी AI और इंजीनियरिंग टीमों को बनाए रखना और उनका विस्तार करना कंपनी की ग्रोथ के लिए बहुत ज़रूरी है।
कर्मचारियों का वेतन और भविष्य की योजना
कंपनी का कहना है कि इस सैलरी आवंटन में मौजूदा टीम के सदस्यों के साथ-साथ ML, AI और प्लेटफॉर्म इंजीनियरिंग में नए लोगों की भर्ती का खर्च भी शामिल है। एक ऐसे मार्केटप्लेस के लिए जो कम मार्जिन और हाई-फ्रीक्वेंसी पर काम करता है, फुलफिलमेंट, क्लाउड ऑप्टिमाइजेशन या डिलीवरी रूटिंग में छोटी सी भी एफिशिएंसी (दक्षता) यूनिट इकोनॉमिक्स (प्रति यूनिट लागत और लाभ) को काफी हद तक बदल सकती है। इसलिए, मीशो का प्रॉफिटेबिलिटी (लाभप्रदता) की ओर बढ़ना इस बात पर निर्भर करता है कि वह अपने ऑपरेशनल सिस्टम को कितना ऑटोमेट कर पाता है।
वैश्विक कंपनियों से तुलना
यह तुलना दुनिया की बड़ी टेक कंपनियों से भी की जा सकती है। अमेज़न (Amazon), अलीबाबा (Alibaba), पिंडूडुओ (Pinduoduo) और मर्काडो लिब्रे (MercadoLibre) जैसी कंपनियों ने भी अपने शुरुआती दौर में, जब वे मुनाफा नहीं कमा रही थीं, फिजिकल एसेट्स की बजाय इंजीनियरिंग में भारी निवेश किया था। इन कंपनियों ने टेक्नोलॉजी पेरोल को लॉन्ग-टर्म कैपिटल एक्सपेंडिचर (दीर्घकालिक पूंजीगत व्यय) माना, क्योंकि उनका मानना था कि यह ऐसी मजबूत दीवारें (defensible moats) बनाता है जिन्हें कॉम्पिटिटर आसानी से पार नहीं कर सकते। मीशो का फाइलिंग भी इसी सोच के अनुरूप लगता है, खासकर भारत में वैल्यू ई-कॉमर्स सेगमेंट को मज़बूत करने की उसकी महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए, जो अभी भी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है।
ऑपरेटिंग मेट्रिक्स में सुधार और भविष्य की उम्मीदें
फिलहाल, कंपनी अपने ऑपरेटिंग मेट्रिक्स (परिचालन मापदंडों) में सुधार का हवाला दे रही है। ऑर्डर फ्रीक्वेंसी (ऑर्डर की आवृत्ति) में वृद्धि, NMV (नेट मर्चेंडाइज वैल्यू) ग्रोथ में तेज़ी, और FY24 और FY25 में पॉजिटिव फ्री कैश फ्लो (मुक्त नकदी प्रवाह) इस बात का संकेत देते हैं कि कंपनी का मॉडल स्थिर हो रहा है। मैनेजमेंट का मानना है कि भारत में वैल्यू-कॉन्शियस (कीमत के प्रति जागरूक) खरीदारों की संख्या बढ़ रही है, नॉन-इलेक्ट्रॉनिक्स कैटेगरी में ई-कॉमर्स की पैठ अभी भी कम है, और एक डोमिनेंट लो-AOV (औसत ऑर्डर वैल्यू) प्लेटफॉर्म के लिए अभी भी बड़ा मौका है। इस नज़रिए से, टेक्नोलॉजी टैलेंट में निवेश एक वैकल्पिक खर्च नहीं, बल्कि एक स्ट्रक्चरल नेसेसिटी (संरचनात्मक आवश्यकता) है।

