सिद्धारमैया-शिवकुमार एकता: कर्नाटक में कांग्रेस की एकजुटता, 2028-2029 चुनावों पर फोकस

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने बेंगलुरु में नाश्ते की बैठक के बाद एकजुटता दिखाई। दोनों नेताओं ने मिलकर काम करने का वादा किया और किसी भी भ्रम को दूर करने की बात कही। यह बैठक कांग्रेस आलाकमान के निर्देश पर हुई थी।

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने बेंगलुरु में एक नाश्ते की बैठक के बाद एकजुटता का प्रदर्शन किया। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने का वादा किया और किसी भी तरह के भ्रम को खत्म करने की बात कही। यह बैठक कांग्रेस आलाकमान के कहने पर हुई थी, जिसने दोनों नेताओं को اختلافات सुलझाने के लिए कहा था।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा, "शिवकुमार और मेरे बीच कोई मतभेद नहीं है। भविष्य में भी नहीं होगा।" उन्होंने यह बात उपमुख्यमंत्री के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही। उन्होंने आगे कहा, "अब कोई भ्रम नहीं रहेगा। हम हाईकमान को समझौते के बारे में सूचित करेंगे।" इस बैठक में सीएम के कानूनी सलाहकार एएस पोंनान्ना भी मौजूद थे।
उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि सरकार सिद्धारमैया के नेतृत्व में बनी है और वे आलाकमान के निर्देशों के अनुसार काम कर रहे हैं। उन्होंने सीएम का समर्थन करते हुए कहा, "नेतृत्व के मुद्दे पर हम दोनों का एक ही रुख है। हम हाईकमान के फैसले का पालन करेंगे।" उन्होंने यह भी बताया कि अब उनका लक्ष्य पार्टी को मजबूत करना और 2028 के विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनावों में जीत दिलाना है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मीडिया पर "सत्ता बंटवारे को लेकर भ्रम फैलाने" का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि वे जल्द ही शिवकुमार के घर जाकर उनके साथ दोपहर का भोजन करेंगे। जब उनसे पूछा गया कि क्या विपक्ष, यानी बीजेपी-जेडीएस, 8 दिसंबर से शुरू होने वाले बेलगावी सत्र में अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है, तो दोनों नेताओं ने कहा कि सरकार ऐसी किसी भी स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटेगी।

हालांकि, रविवार को दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की पीठ थपथपाई और स्नेह व्यक्त किया, लेकिन सूत्रों का कहना है कि यह एक अस्थायी शांति समझौता लग रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस आलाकमान नहीं चाहता कि संसद सत्र शुरू होने के समय कर्नाटक के मामले से उनका ध्यान भटके। यह देखना बाकी है कि यह शांति कितनी देर टिकती है, क्योंकि ऐसा लगता है कि दोनों नेताओं के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।

सूत्रों के अनुसार, शिवकुमार अभी भी इस बात पर अड़े हैं कि उन्हें अब सिद्धारमैया का स्थान लेना चाहिए, क्योंकि पार्टी का कार्यकाल आधा पूरा हो चुका है। उन्होंने मई 2023 में सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह से पहले एक "गुप्त" (समझौते) का जिक्र किया था, जिसके बारे में पांच-छह शीर्ष नेता जानते थे।

यह बैठक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल के कहने पर हुई थी। उन्होंने दोनों नेताओं से कहा था कि वे नाश्ते पर मिलें और अपने मतभेदों को दूर करें। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य पार्टी के भीतर चल रही खींचतान को खत्म करना और एकजुट होकर सरकार चलाना था।

सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच सत्ता को लेकर खींचतान की खबरें काफी समय से चल रही थीं। यह खींचतान पार्टी के भीतर गुटबाजी को भी बढ़ावा दे रही थी। ऐसे में आलाकमान का यह कदम पार्टी को एकजुट रखने और कर्नाटक में सरकार को स्थिर करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

दोनों नेताओं ने मिलकर काम करने का जो वादा किया है, वह कर्नाटक की जनता के लिए भी राहत की खबर है। जनता को उम्मीद है कि अब सरकार विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित करेगी और राज्य की समस्याओं का समाधान करेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह एकजुटता कितनी लंबी चलती है और क्या दोनों नेता वास्तव में मिलकर काम कर पाते हैं।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि कर्नाटक में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए, पार्टी के लिए एकजुट रहना बहुत जरूरी है। अगर पार्टी के भीतर मतभेद बने रहते हैं, तो इसका सीधा असर चुनावों के नतीजों पर पड़ सकता है। इसलिए, यह नाश्ते की बैठक और उसके बाद का एकजुटता का प्रदर्शन, पार्टी के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

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