Subhash Ghais Revelation Great Music In Films Comes From Emotional Connection Not Money
सुभाष घई और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल: संगीत की भावनात्मक जुगलबंदी पर निर्देशक का खुलासा
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निर्देशक सुभाष घई ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ अपने गहरे रिश्ते को याद किया। उन्होंने बताया कि फिल्मों में बेहतरीन संगीत पैसों से नहीं, बल्कि निर्देशक और संगीतकार के भावनात्मक जुड़ाव से आता है। एक गांव की महिला का गाना सुनकर उन्हें प्यारेलाल जी की याद आई। उन्होंने दिवंगत लक्ष्मीकांत जी को भी याद किया।
फिल्मकार सुभाष घई ने हाल ही में महान संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ अपने गहरे रिश्ते को याद किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में बताया कि फिल्मों में शानदार संगीत पैसों के लेन-देन से नहीं, बल्कि निर्देशक और संगीतकार के बीच भावनात्मक जुड़ाव से आता है। घई ने बताया कि कैसे एक 95 साल की गांव की महिला का 'बड़ा दुख दीना' गाना पूरी धुन और जोश के साथ गाते हुए एक वीडियो देखकर उन्हें प्रेरणा मिली। इस वीडियो ने उन्हें इतना भावुक कर दिया कि उन्होंने तुरंत वीडियो कॉल पर दिग्गज संगीतकार प्यारेलाल जी से संपर्क किया और 1980 और 1990 के दशक में उनके बीच रहे गहरे भावनात्मक जुड़ाव को याद किया, जिसने ऐसे संगीत को जन्म दिया था।
वरिष्ठ निर्देशक ने प्यारेलाल जी से फिर से जुड़कर खुशी जताई और उनके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना की। उन्होंने दिवंगत लक्ष्मीकांत जी को भी याद किया। अपनी एक पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर साझा करते हुए सुभाष घई ने लिखा, "Only emotional harmony between a director n music composers can bring great music in a Film. Not money transactions." उन्होंने आगे बताया, "I got a video reel in social media on 95 years village woman singing 'bada dukh dina' in full tune n vigour that inspired me to call Pyarelal ji on video n talk about our true emotional tie up to bring such music in 80/90 s We felt happy. God bless him healthy long life. We miss luxmi ji too."लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल भारतीय संगीत जगत की एक जानी-मानी जोड़ी थी। इसमें लक्ष्मीकांत शांताराम कुडालकर शामिल थे। उन्होंने 1963 से 1998 तक करीब 750 फिल्मों के लिए संगीत दिया और कई बड़े फिल्मकारों के साथ काम किया। इस जोड़ी ने अपने करियर की शुरुआत बाबूभाई मिस्त्री की फिल्म 'पारसमणि' से की थी, जो काफी सफल रही। फिल्म के दो गाने, 'हँसता हुआ नूरानी चेहरा, काली ज़ुल्फ़ें, रंग सुनहरा' और 'वो जब याद आए, बहुत याद आए,' बहुत हिट हुए और उस समय की मशहूर 'बिनाका गीतमाला' की सूची में शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने राजश्री प्रोडक्शंस की ब्लॉकबस्टर म्यूजिकल ड्रामा 'दोस्ती' का संगीत देकर अपनी पहचान और मजबूत की।
सुभाष घई का यह पोस्ट दिखाता है कि कैसे कला में पैसों से ज्यादा दिल का रिश्ता मायने रखता है। जब निर्देशक और संगीतकार एक-दूसरे की भावनाओं को समझते हैं और मिलकर काम करते हैं, तभी ऐसी धुनें बनती हैं जो सालों तक लोगों के दिलों में बस जाती हैं। 95 साल की उस महिला का गाना सुनकर घई को अपने पुराने दिनों की याद आ गई, जब वे प्यारेलाल जी के साथ मिलकर ऐसे ही यादगार गाने बनाते थे। यह दिखाता है कि संगीत की असली ताकत भावनाओं में छिपी होती है, न कि सिर्फ व्यावसायिकता में। प्यारेलाल जी के साथ यह बातचीत घई के लिए एक सुखद अनुभव रहा, जिसने उन्हें अपने सुनहरे दिनों की याद दिला दी।
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