परथन लगाकर बेलिए

नवभारत टाइम्स
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समय के साथ बोलियों के कई शब्द लुप्त हो रहे हैं। रोटी बेलने के लिए इस्तेमाल होने वाले 'परथन' जैसे शब्द अब आम बोलचाल से गायब हो रहे हैं। बिहार और झारखंड में आखिरी रोटी न खाने की परंपरा है। गुजरात, महाराष्ट्र और मारवाड़ी में इसके अलग-अलग नाम हैं। हिंदी में 'परथन लगाकर बोलना' मुहावरा जीवित है।

parthan the disappearing word for roti rolling flour and its cultural significance
बदलते वक्त के साथ हमारी बोलियों से कई अनमोल शब्द गायब होते जा रहे हैं। ऐसा ही एक शब्द है ' परथन ' या 'पलथन', जो रोटी बेलते समय इस्तेमाल होने वाले आटे के लिए प्रयोग होता था। आज इसे बस 'आटा' कहकर टाल दिया जाता है। बिहार और झारखंड के गांवों में यह सिखाया जाता है कि आखिरी रोटी नहीं खानी चाहिए, वह कुत्ते के लिए होती है। अक्सर, बची हुई परथन की रोटी ही इस काम आती है। मैथिली और भोजपुरी में भी इसे 'परथन' ही कहते हैं। दिल्ली-एनसीआर में हिंदी बोलने वाले घरों में 'पलोथन' शब्द सुनने को मिल सकता है। गुजरात में पिसे हुए अनाज को 'लोट', गुंथे हुए आटे को 'कणक' और रोटी बेलने में लगने वाले आटे को 'अटामण' कहते हैं। मारवाड़ी में यह 'पलोघन', मराठी में 'पीठ लावणे' बन जाता है। बांग्ला के ग्रामीण इलाकों में शायद इसका कोई नाम रहा होगा, लेकिन शहरों में लोग इसे 'रुटी बेलार आटा' कहकर काम चला लेते हैं। दिलचस्प बात यह है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में 'परथन' मुहावरे में भी जिंदा है, जैसे 'परथन लगाकर मत बोलिए', जिसका मतलब है बातों को बढ़ा-चढ़ाकर न कहें। अंग्रेजी में 'परथन' के लिए कोई सीधा शब्द नहीं है, लेकिन अंग्रेजी जानने वालों को इसे 'flour for dusting the dough' कहकर समझाया जा सकता है।

यह शब्द हमारी भाषा और संस्कृति का एक अहम हिस्सा था, जो अब धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। 'परथन' वह खास आटा होता है जिसे रोटी बेलते समय चकले और बेलन पर लगाया जाता है ताकि रोटी चिपके नहीं। यह रोटी को एक समान बेलने में मदद करता है और उसे फटने से बचाता है।
बिहार और झारखंड की परंपराओं में आखिरी रोटी का विशेष महत्व है। इसे कुत्ते के लिए छोड़ा जाता है, जो एक तरह की दया और कृतज्ञता का भाव दर्शाता है। कई बार, परथन से बनी रोटी ही इस परंपरा को पूरा करती है।

अलग-अलग भाषाओं और बोलियों में इस आटे के लिए अलग-अलग नाम हैं, जो हमारी भाषाई विविधता को दर्शाते हैं। गुजरात में इसे 'अटामण', मारवाड़ी में 'पलोघन' और मराठी में 'पीठ लावणे' कहा जाता है। यह दिखाता है कि कैसे एक ही चीज के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग होता है।

यह भी एक रोचक बात है कि 'परथन' शब्द हिंदी मुहावरों में भी जीवित है। 'परथन लगाकर बोलना' का अर्थ है किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर या बढ़ा-चढ़ाकर कहना। यह दर्शाता है कि कैसे भाषा के शब्द सिर्फ अर्थ ही नहीं बताते, बल्कि सांस्कृतिक संदर्भ भी समेटे होते हैं।

अंग्रेजी में 'परथन' के लिए कोई सीधा शब्द न होना यह बताता है कि कुछ अवधारणाएं और शब्द स्थानीय भाषाओं में ही सबसे अच्छे से व्यक्त हो पाते हैं। हालांकि, 'flour for dusting the dough' जैसे वाक्यांशों से इसका अर्थ समझाया जा सकता है। यह लुप्त होते शब्दों पर एक विचारोत्तेजक लेख है, जो हमें अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति जागरूक करता है।

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