राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: गवाहों की गवाही में देरी पर लगेगी लगाम, त्वरित न्याय की ओर कदम

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राजस्थान हाईकोर्ट ने मुकदमों में देरी खत्म करने का बड़ा फैसला लिया है। अब गवाहों की गवाही शुरू होने के बाद सुनवाई रोज होगी। वकीलों की सुविधा के लिए टालमटोल नहीं चलेगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए यह कदम उठाया गया है। आरोपी या वकील देरी करते हैं तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

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जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट प्रशासन ने मुकदमों में हो रही देरी को खत्म करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। अब गवाहों की गवाही शुरू होने के बाद सुनवाई रोज होगी और वकीलों की सुविधा के लिए टालमटोल नहीं चलेगी। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने 26 नवंबर को एक सर्कुलर जारी कर राज्य के सभी जिला और सेशन कोर्ट को ये निर्देश तुरंत लागू करने को कहा है। यह सब सुप्रीम कोर्ट के समय पर न्याय देने के आदेशों का पालन करने के लिए किया जा रहा है।

इस सर्कुलर के मुताबिक, एक बार जब गवाहों की जांच शुरू हो जाती है, तो अदालतों को हर दिन सुनवाई करनी होगी। किसी भी तरह की टालमटोल तभी की जाएगी जब कोई बहुत ही खास वजह हो, जिसे लिखना ज़रूरी होगा। सर्कुलर में साफ कहा गया है कि सिर्फ वकीलों की सुविधा के लिए तारीखें नहीं बढ़ाई जाएंगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि "किसी वकील की असुविधा को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 309 के तहत 'विशेष कारण' नहीं माना जाएगा।" यह धारा लगातार सुनवाई की ज़रूरत बताती है।
रजिस्ट्रार जनरल ने चेतावनी दी है कि अगर आरोपी या उनके वकील जानबूझकर देरी करते हैं, तो उन्हें गंभीर नतीजों का सामना करना पड़ेगा। अगर आरोपी या उनके वकील सहयोग नहीं करते हैं, तो निचली अदालतें यह जांच करेंगी कि कहीं वे कार्यवाही में देरी करने के लिए मिले तो नहीं हैं। अगर ऐसा साबित होता है, तो अदालतें आरोपी को जमानत रद्द करने का कारण बताने का आदेश दे सकती हैं। इसी तरह, अगर वकील (आरोपी नहीं) देरी का कारण बनता है, तो अदालतें एक 'एमिकस क्यूरी' (amicus curiae) यानी अदालत की मदद करने वाले वकील को नियुक्त कर सकती हैं और जिरह (cross-examination) आगे बढ़ा सकती है।

इसके अलावा, अदालतों को गवाहों को परेशान करने के लिए आरोपियों पर उचित जुर्माना लगाने का अधिकार दिया गया है। इसमें गवाहों के आने-जाने का खर्च भी शामिल हो सकता है। अगर गवाहों के मौजूद होने पर भी आरोपी हाज़िर नहीं होता है, तो अदालत जमानत रद्द कर सकती है, जब तक कि उनकी गैरमौजूदगी में गवाही की अनुमति देने वाला एक औपचारिक हलफनामा (undertaking) दाखिल न किया जाए।

जजों को गवाहों की जांच के लिए पहले से तय कार्यक्रम बनाने और उसे सबको बताने की सलाह दी गई है, ताकि दोनों पक्षों को इसकी जानकारी रहे। लोक अभियोजकों (public prosecutors) को गवाहों के लिए समन और अन्य ज़रूरी कागज़ात समय पर जारी करने का काम सौंपा गया है। सभी जिला और सेशन जजों को ये निर्देश अपने अधीनस्थ अदालतों तक पहुंचाने और उनका पालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है। इस कदम से अदालतों में मुकदमों के फैसले जल्दी होने की उम्मीद है और न्याय मिलने में देरी कम होगी।

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